रविवार, 16 मई 2021

५६७. कोरोना में प्रेम



यह मत समझना 

कि मुझे तुमसे प्रेम नहीं है,

उतना ही है,

जितना पहले था,

बल्कि उससे भी ज़्यादा,

फ़र्क़ बस इतना है 

कि इन दिनों मुश्किल है 

उसे व्यक्त करना. 


तुम ही कहो 

कि कैसे उतर सकता है प्रेम 

शब्दों में या चेहरे पर,

जब लाशों के सिवा 

कहीं कुछ दिखता ही नहीं,

चीखों के सिवा 

कहीं कुछ सुनता ही नहीं. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. सच सरल नहीं है सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में कुछ भी व्यक्त कर पाना

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  2. भावुक मन की संवेदनशील अभिव्यक्ति ।।

    यथार्थ को कहती हुई क्षणिकाएँ

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  3. सत्य को उद्घाटित करती संवेदनशील अभिव्यक्ति ।

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  4. कविता का ककहरा कोई आपसे सीखे। बहुत सुंदर लिखते हैं। लेखनी चलती रहे।

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  5. जब भी आँखें मूंदें तो नदी में तैरती लाशें दिखती हैं. बहुत सुन्दर कविता.

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  6. मन को छूती अभिव्यक्ति
    बहुत सुंदर

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