बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

५३१. डोर



कल रात बहुत रोया आसमान,

उसके दुःख से दुखी थी ज़मीन भी,

घास की कोरों पर आँसू थे सुबह तक.


मुस्कराएगा थोड़ी देर में आसमान,

खिल उठेगी उसे देखकर धरती,

सूख जाएंगे घास पर चमकते आँसू.


एक दूजे से दूर हैं धरती और आकाश,

मिल नहीं सकते आपस में कभी भी,

फिर भी कोई-न-कोई डोर तो है,

जो बांधे हुए है एक को दूसरे से .


13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरे, अंतर्मन को छूती सुन्दर अनुभूति..

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  2. मुस्कराएगा थोड़ी देर में आसमान,
    खिल उठेगी उसे देखकर धरती,
    सूख जाएंगे घास पर चमकते आँसू.
    हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  4. एक दूजे से दूर हैं धरती और आकाश,

    मिल नहीं सकते आपस में कभी भी,

    फिर भी कोई तो ऐसी डोर है,

    जो बांधे है एक को दूसरे से .

    सत्य है,लाजबाब सृजन ,सादर नमन आपको

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  5. बहुत सुंदर ! फासला कितना भी हो अपनों के सुख-दुःख का एहसास सदा बना रहता है

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  6. मन में गहरे तक उतरती भावपूर्ण रचना
    बहुत सुंदर
    बधाई

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