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बुधवार, 27 जनवरी 2021

५२९. बूँदें



बहुत देर हुई,

थम गई है बारिश,

पर बूँदें हैं 

कि चिपकी हैं पत्तों से.


उन्हें नहीं पता

कि उन्हें उतरना ही होगा,

मिलना ही होगा मिट्टी में,

हारना ही होगा 

धूप से, हवा से. 


बूँदें नहीं जानतीं 

कि इतना ज़्यादा लगाव 

नहीं सुहाता किसी को  

किसी का, किसी से.

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर मनोहारी अभिव्यक्ति से लबरेज़ नायाब कृति..

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2022...वक़्त ठहरता नहीं...) पर गुरुवार 28 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!




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  3. लाजवाब, अति उत्तम शुभप्रभात नमन हरि ओम शरणम्

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  4. बूँदें नहीं जानतीं

    कि इतना ज़्यादा लगाव

    नहीं सुहाता किसी को

    किसी का, किसी से...वाह!बहुत ही सुंदर सर।
    सादर

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  5. नमस्कार ओंकार जी, बूंंद के माध्यम से बहुत खूब ल‍िखा...क‍ि
    अति सर्वत्र वर्जयेत् ...

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  6. उन्हें नहीं पता

    कि उन्हें उतरना ही होगा,

    मिलना ही होगा मिट्टी में,

    हारना ही होगा

    धूप से, हवा से.
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं