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शनिवार, 16 जनवरी 2021

५२५. जाड़ों की धूप


जाड़ों की गुनगुनी धूप 

कितनी ममता-भरी है,

जब खड़ा होता हूँ,

तो हाथ रख देती है सिर पर,

सहलाती है गालों को,

जब लेटता हूँ,

तो थपकाती है पीठ,

सुला देती है मुझे.

मैं सपने देखने लगता हूँ,

कहीं और पहुँच जाता हूँ,

भूल जाता हूँ उस धूप को,

जिसने थपकी देकर मुझे सुलाया था.

12 टिप्‍पणियां:

  1. मंत्रमुग्ध करती भावाभिव्यक्ति ।

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  2. बहुत सुंदर। बहुत ही बढ़िया। शुभकामनाएँ। सादर।

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  3. जाड़े की धूप का बहुत सुंदर चित्रण ...

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  4. बहुत ही खूबसूरत एवं मनमोहक छायाचित्र जाड़े की गुनगुनी धूप का..सुन्दर कृति..

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  5. वाह कितने जीवंत अहसास है ,
    शानदार सृजन।

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  6. कच्ची , गुनगुनी धूप, सुखद अहसास दिलाएँ बहुत ही बढ़िया

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