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शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

३८६.सूरज

Sunrise, Sun, Morgenrot, Skies

घर की बालकनी से मैं
सूरज को ताकता हूँ,
सूरज मुस्कराता है,
पूछ्ता है,'उठ गए ?
मैं भी उठ गया.'

लाल गुलाल सी किरणें 
मेरे चेहरे पर
मल देता है सूरज. 

मैं कमरे में लौटता हूँ,
आईने में देखता हूँ,
चेहरा तो साफ़ है,
पर महसूस करता हूँ 
कि  रंग दिया है सूरज ने 
कहीं गहरे तक मुझे. 

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति जो भी रंग लगाए वो कम है साहब...हम हैं कि बेरंग होने पर तुले रहते हैं।
    बहुत ही लाजवाब ।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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  2. .. वाह बेहद खूबसूरत पंक्तियां रंग दिया है सूरज ने मुझे कहीं गहरे तक बहुत ही अच्छा लिखा आपने मन को भा गई आपकी यह रचना

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  3. वाह बहुत खूब सुंदर एहसास ।
    तृप्त भावों का चित्रण।

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  4. दिन की लाली वाही तो लाता है और पोत देता है ताजगी ...
    लाजवाब रचना ...

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