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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

३८३. बोलो

बोलो 
कि चुप रहना ज़रूरी नहीं है,
न ही यह तुम्हारे हित में है.

हो सकता है, 
तुम्हारे चुप रहने से 
यह मान लिया जाय 
कि तुम्हें बोलने की ज़रूरत ही नहीं 
और तुम्हारी जीभ काट ली जाय.

यह भी हो सकता है 
कि आज तुम्हारे चुप रहने से 
दूसरे लोग तब चुप रहें,
जब उनका बोलना 
तुम्हारे लिए बेहद ज़रूरी हो.

डरो मत, बोलो,
गूंगे भी चुप नहीं रहते,
तुम्हारे मुंह में तो फिर भी ज़ुबान है.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक जागरूकता का आह्वान करती रचना।

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  2. बोल कि लब आजाद है तेरे....
    सुंदर रचना।

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,कभी कभी बोलना बहुत जरूरी होता हैं,सादर नमस्कार

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  4. अपना एहसास कराना जरूरी है ... बोलना जरूरी है ...
    अच्छी रचना ...

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