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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

३५६. माँ की खोज


उस लड़की ने कभी नहीं देखा 
अपनी माँ को,
पर माँ तो उसकी रही ही होगी
कभी-न-कभी,कहीं-न-कहीं,
उदास रहती थी वह लड़की,
खोजा करती थी अपनी माँ को.

एक दिन किसी लोकगीत में 
उसे मिल गई उसकी माँ,
अब वह लड़की हर वक़्त 
वही गीत गुनगुनाती है,
लोग उसे पागल समझते हैं.

9 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    28/04/2019 को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में......
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-04-2019) को " गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन की ९९ वीं पुण्यतिथि " (चर्चा अंक-3319) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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  3. बहुत सुन्दर ओंकार जी.
    लोकगीतों में मिट्टी की महक साथ-साथ माँ की खुशबू भी होती है.

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  4. जिसने जीवन दिया उसका अहसास ही काफी है ,गीत गुनगुना कोई पागल की निशानी नही ,इसी बात पर एक गाना याद आ गया -----
    क्या दर्द किसी का लेगा कोई इतना तो किसी मे दर्द नही ,बहते हुए आँसू और बहे अब ऐसी तसल्ली रहने दो ....
    हृदस्पर्शी रचना

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  5. बहुत ही सुंदर रचना है ओंकार जी |पढ़कर मन भावुक सा हो गया | माँ को गीत में ढूंढ कर भी इतनी ख़ुशी !!!!!!!! बहुत मर्मस्पर्शी रचना है आपकी | मन को भावुक कर गई| सादर --

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  6. अपना दर्द गीतों में ढूंढ लेना...अच्छा तरीका है...बहुत सुन्दर...

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