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शनिवार, 25 नवंबर 2017

२८६. कविता

मैंने छोड़ दिया है अब 
कविता लिखना.

कविता लिखने का सामान -
काग़ज़, कलम,दवात -
दूर कर दिया है मैंने,
यहाँ तक कि कुर्सी-मेज़ भी 
हटा दी है अपने कमरे से.

मन में भावनाओं का 
ज्वार उमड़ रहा हो,
शब्द अपने-आप 
लयबद्ध होकर आ रहे हों,
तो भी नहीं लिखता मैं 
कोई कविता.

मैंने तय कर लिया है 
कि मैं तब तक नहीं लिखूंगा 
कोई नई कविता,
जब तक कि उसमें लौट न आए  
कोई आम आदमी.

3 टिप्‍पणियां:

  1. लिखना बन्द ना करें। आम आदमी को पुकारती कविता लिखें। सुन्दर कविता।

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  2. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति आदरणीय ओंकार जी। सादर आग्रह के साथ निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों -
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    जवाब देंहटाएं
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    तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर

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