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शनिवार, 13 सितंबर 2014

१३९. परिवर्तन

अब कोई बहस नहीं होगी,
न कोई अनदेखी, न अपमान.
बात-बात पर रूठ जाना,
हर चीज़ में नुक्स निकालना,
गुस्सा करना, चिड़चिड़ाना,
किस्मत को कोसना,
बेवज़ह की ज़िद करना -
अब सब बदल गया है.

मेरी रोज़-रोज़ की बदतमीज़ियाँ
अब बीते ज़माने की बात हो गई है.

पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा,
मेरा बेटा अब बच्चा नहीं रहा,
पिताजी, वह भी जवान हो गया है.

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-09-2014) को "मास सितम्बर-हिन्दी भाषा की याद" (चर्चा मंच 1736) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हिन्दी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर प्रस्तुति ! हिन्दी-दिवस पर वधाई ! यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की कोइ भी राष्ट्र भाषा ही नहीं है | राज-भाषा दसे जी बहलाया गया है ! सभी मित्रों से आग्रह है कि इस विषय में क्या किया जा सकता है, सलाह दें !
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    उत्तर
    1. सरकार ने हिंदी को अनिवार्य विषय बना रखा है ...बस अपने बच्चों को हिंदी माध्यम में भेजना शुरू कर दो ...
      बाकि आप समझदार लगते हैं

      हटाएं
  3. अरे वाह ...आज की शुरुवात इतनी अच्छी कविता के साथ हो रहा है
    मजा आ गया पढ़ कर :)

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  4. पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा,
    मेरा बेटा अब बच्चा नहीं रहा,
    पिताजी, वह भी जवान हो गया है.
    ...वाह...लाज़वाब और सटीक

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  5. मेरा बेटा अब बच्चा नहीं रहा,
    पिताजी, वह भी जवान हो गया है.
    .................... सटीक

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